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"दुःख की पिछली रजनी बीच
विकसता सुख का नवल प्रभात,
एक परदा यह झीना नील
छिपाये है जिसमें सुख गात।
जिसे तुम समझे हो अभिशाप,
जगत की ज्वालाओं का मूल-
ईश का वह रहस्य वरदान,
कभी मत इसको जाओ भूल।
प्रकृति के यौवन का श्रृंगार
करेंगे कभी न बासी फूल,
मिलेंगे वे जाकर अति शीघ्र
आह उत्सुक है उनकी धूल।
और यह क्या तुम सुनते नहीं
विधाता का मंगल वरदान-
'शक्तिशाली हो, विजयी बनो'
विश्व में गूँज रहा जय-गान।"
' जीवन के अंतरतम में कामायनी के इन शब्दों ने असीम ऊर्जा की सतत् धारा को प्रवाहित किया है , इसी प्रवाह के अनुभवों , सकल्पों एवं विषमताओं की कडियाँ लेकर प्रस्तुत हूँ ' ||
" सत्यमेव जयते "