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वन्दे मातरम् कोई विवाद का विषय नहीं है | यह राष्ट्र के प्रति समर्पण का सबसे बड़ा प्रतीक है | यह भारत के प्रत्येक नागरिक की ओर से की जाने वाली सर्वोत्कृष्ट वंदना भी है | यह मजहबी भेदभाव से परे है इसकी मिसाल स्वतंत्रता संघर्ष में मिल चुकी है |
अब हमें इस पर कोई फतवा स्वीकार नहीं है | अगर इस पर कोई विवाद था भी तो वो 1947  के पहले सुलझा लिया गया था | एक और प्रयास 2006 में भी किया जा चुका है | किन्तु अब हम सभी भारत माता के बच्चों की हैसियत से इन फतवा जारी करने वालों को और उनके सरपरस्तों को अंतिम चेतावनी दे रहे हैं |


समझ गए तो ठीक वरना ...................................... | "

भारत माता की जय ||

वन्दे मातरम् ||

|| " सत्यमेव जयते " ||





26 / 11 की दुखद घटना को बीते हुए अभी एक वर्ष पूरा भी नहीं हुआ है लेकिन इसको लेकर इस्लामवादी षड़यंत्र प्रारंभ हो चुके हैं | इस बार इनकी तैयारी ना सिर्फ इस तरह की आतंकी कार्यवाहियों को जायज ठहराने की है बल्कि वैश्विक इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ भारत के पक्ष को मूल रूप से कमजोर करने के साथ - साथ आतंक से लड़ रहे पूरे तंत्र और शासकीय व्यवस्था को भी कटघरे में खड़े करने की साजिश है | इस नए प्रारूप में इन साजिशों को जिस प्रकार से अंजाम दिया जा रहा है उसे देखकर निकट भविष्य में आसन्न खतरे स्पष्ट दिखलाई पड़ते हैं | अभी तक भारत में इस्लामवादी साजिशों के तार केवल पाकिस्तान और बांग्लादेश से ही जोड़ कर देखे जा रहे थे लेकिन अब इसकी आहट निश्चित रूप से विश्व्यापी इस्लामी कट्टरपंथ को सींचते हुए धनी मुस्लिम देशों , खाड़ी देशों की मदद से फैलते कट्टरवाद को पोषित करते हुए क़दमों के रूप में सुनी जा सकती है |

वस्तुतः इस्लामवादियों के इन षड्यंत्रों को समझने के लिए हमें 26 / 11 के आतंकी हमले के बाद हुई घटनाओं को एक एक करके विश्लेषित करने और समझने की ज़रूरत है | हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एस . एम . मुश्रिफ ने एक 26 / 11  के हमले को खुला इस्लामवादी दृष्टिकोण देते हुए एक पुस्तक लिखी है  ' Who Killed Karkare ' | इस पुस्तक से कई चौकाने वाले तथ्य खुलकर सामने आते हैं | इस पुस्तक में ना सिर्फ भारतीय खुफिया एजेंसियों को कटघरे में खड़ा किया गया है बल्कि एक पूरी नई थ्योरी तैयार करने की कोशिश है जिसमें 26 / 11  के आतंकी हमले को 9 / 11 की तर्ज़ पर भारत सरकार द्वारा प्रायोजित  बताये जाने और इसी की तर्ज़ पर मुस्लिमों के साथ होने वाली कार्यवाहियों को हिन्दू सरकार का अन्याय भी साबित करने की कोशिश है |


अगर इस पुस्तक के मूल पर गौर करें तो इसमें ना सिर्फ करकरे की शहादत के लिए हिन्दू प्रतिक्रियावादियों को दोषी ठहराया गया है बल्कि कसाब और इस्माईल ( जिसे गोरेगांव चौपाटी पर स्व.  तुकाराम ओम्बले के नेतृत्त्व में मुंबई पुलिस ने मार गिराया था ) को भारतीय साजिश के तहत प्रताड़ित मुस्लिम युवकों के रूप में दिखलाया गया है | ठीक वैसे ही जैसे कि कश्मीर में मारे गए आतंकियों को पीड़ित पक्ष दिखाकर अफजल गुरु जैसे को हीरोइक छवि दी गयी है | जब सरकार इस का खंडन करती है तो इस्लामवादी सीधे - सीधे बटला हाऊस जैसी कार्यवाहियों का उदाहरण देकर सरकार को इस्लाम विरोधी सिद्ध करने से नहीं चूक रहे | वोटबैंक के लालच में सरकार ने भी अभी तक ऐसी किसी धारणा का पुरजोर खंडन करने में अपनी नाकामी दिखाकर कट्टरपंथियों को मुस्लिम युवा पीढी को बरगलाने और मुंबई हमले को  ' भारत प्रायोजित ' रूप में देखने की अपरोक्ष स्वीकृति भी दे ही दी है | इस पूरे मिशन को इस नजरिये से प्रारूपित किया गया है की भविष्य में मुस्लिम देश भारत पर मुस्लिम उत्पीडन के लिए आंतरिक हिन्दू आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला मुल्क घोषित कर सकें और अंततः मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए स्वायत्तता मांगी जाये जो की देश को विभाजन की राह पर ले जायेगी |

इस्लामवादियों का यह बौद्धिक मिशन बेहद खतरनाक है जिसमें सरकार की चुप्पी आग में घी डालने के बराबर है | इस पुस्तक बहुत सारे पहलू अभी बाकी हैं जिन पर चिंतन को अभी यहीं विराम दे रहा हूँ किन्तु आगे जारी रहेगा |

|| " सत्यमेव जयते " ||





यहाँ बात तुलना की नहीं बल्कि उस पीड़ा की हो रही है , जिसको भारतीय लोकतंत्र में विश्वास रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति  अनुभव कर सकता है | आज विश्व के कोने - कोने में इस्लामी आतंक और तालिबान का खतरा बताकर आवश्यक जागरूकता को जागृत किया जा रहा है लेकिन भारत में सदियों से चली आ रही बर्बर खाप परंपरा , जो की ना सिर्फ एक घोर अलोकतांत्रिक आस्था है बल्कि हरेक दृष्टिकोण से राष्ट्र और धर्म विरोधी भी है , आज धर्म के ठेकेदारों की विषय - वस्तु में सम्मिलित नहीं है |  यह वही परंपरा है जिसने ना सिर्फ देश के एक क्षेत्र के युवाओं के भविष्य को कुंद कर दिया है , अपितु प्रणय - निर्णय के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार से भी वंचित कर रखा है | अब ऐसे में अगर देश और धर्म घोषित चुप्पी साध रखें हैं तो फिर सवाल उठाने हर उस नागरिक को आना पड़ेगा जिसके सरोकार अभी जीवित हैं |

जाटलैंड के आस - पास का क्षेत्र भारत - भूमि पर हुए बड़े - बड़े बदलावों का गवाह रहा है | हस्तिनापुर से लेकर पानीपत के घाव भी इसी भूमि ने देखें हैं शायद इसीलिए आज अपने भविष्य के कर्णधारों खून , बर्बर खाप पंचायतो के तालिबानी फरमानों के हुक्म पर बहाया जाता देखकर भी यह धरती पसीज नहीं रही है |


तानाशाहों के काल की बात करें तो यह कहा जा सकता है कि शासकों ने हमेशा इस समाज आतंरिक मामलों से खुद को दूर रखकर सत्ता पर पकड़ बनायी थी , आज समय बदल चुका है , अब जाटलैंड के नाम से प्रसिद्द यह समाज भारतीय लोकतंत्र और हिंदुत्व को वास्तविक अर्थों में चुनौती दे रहा है | अपनी कुव्यवस्थाओं से पार पाकर जो धर्म खड़ा हो सके वही सच्चा हो सकता है | एक अनुमान के अनुसार हर रोज़ जाटलैंड की खाप पंचायतें अपने खूनी फरमानों से ३ - ४ जानें ले रही हैं | इस धरा पर होने वाले अमानवीय अत्याचारों की बानगी इसी से समझी जा सकती है कि यहाँ स्त्री अनुपात घटकर महज ७५० के आस - पास रह गया है | लेकिन इस सबसे परे  समस्या का सबसे  जो चिंतनीय पहलु है वो है इस पापी व्यवस्था को राज्य तंत्र का अपरोक्ष समर्थन मिलना | हाल ही में संपन्न हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय पार्टियों की भूमिका इस मुद्दे को लेकर अति निंदनीय रही | राष्ट्र की ठेकेदार रही कांग्रेस और खुद को हिंदुत्व की ठेकेदार कहती भाजपा के कर्णधारों ने इस असंवैधानिक खाप व्यवस्था की स्थानीय स्तर पर प्रशंसा करते हुए वोटों की सौदेबाजी के चक्कर में संविधान की तिलांजलि दे दी है |

हर छोटी सी छोटी बात पर भी टिपण्णी  करने वाली हमारी न्यायपालिका भी इस पर अभी तक कोई कठोर आदेश दे पाने में अक्षम साबित हुई है | पिंक चड्डी वाले मामले को स्त्री स्वाभिमान की जीत बताने वाला मीडिया भी इस मामले में जनता को आंदोलित कर पाने में असफल सिद्ध हुआ है | लेकिन इस मामले से सबसे ज्यादा दोषी हैं हिंदुत्व का झंडा उठाये रहने वाले संगठन जो इस तरह की चुप्पी से अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं | ऐसे में जब दिनरात ये खाप पंचायतें न्यायतंत्र और धर्मसत्ता को चुनौती दे रही हैं जनमानस को आगे आकर इनकी ईंट से ईंट बजानी पड़ेगी |

स्वस्थ समाज की बुनियाद ही स्त्री - पुरुष के बीच का नैसर्गिक प्रेम है और यही धर्म का आधार भी है | ऐसे में हिंदुत्व को अपने ही घर में पनप चुके इन तालिबानीयों से निपटने के लिए प्रतीक्षा है फिर किसी दयानंद , राममोहन राय और विद्यासागर जैसे महापुरुष की |

|| " सत्यमेव जयते " ||





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