Posted by Varun Kumar Jaiswal
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यहाँ बात तुलना की नहीं बल्कि उस पीड़ा की हो रही है , जिसको भारतीय लोकतंत्र में विश्वास रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति अनुभव कर सकता है | आज विश्व के कोने - कोने में इस्लामी आतंक और तालिबान का खतरा बताकर आवश्यक जागरूकता को जागृत किया जा रहा है लेकिन भारत में सदियों से चली आ रही बर्बर खाप परंपरा , जो की ना सिर्फ एक घोर अलोकतांत्रिक आस्था है बल्कि हरेक दृष्टिकोण से राष्ट्र और धर्म विरोधी भी है , आज धर्म के ठेकेदारों की विषय - वस्तु में सम्मिलित नहीं है | यह वही परंपरा है जिसने ना सिर्फ देश के एक क्षेत्र के युवाओं के भविष्य को कुंद कर दिया है , अपितु प्रणय - निर्णय के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार से भी वंचित कर रखा है | अब ऐसे में अगर देश और धर्म घोषित चुप्पी साध रखें हैं तो फिर सवाल उठाने हर उस नागरिक को आना पड़ेगा जिसके सरोकार अभी जीवित हैं |
जाटलैंड के आस - पास का क्षेत्र भारत - भूमि पर हुए बड़े - बड़े बदलावों का गवाह रहा है | हस्तिनापुर से लेकर पानीपत के घाव भी इसी भूमि ने देखें हैं शायद इसीलिए आज अपने भविष्य के कर्णधारों खून , बर्बर खाप पंचायतो के तालिबानी फरमानों के हुक्म पर बहाया जाता देखकर भी यह धरती पसीज नहीं रही है |
तानाशाहों के काल की बात करें तो यह कहा जा सकता है कि शासकों ने हमेशा इस समाज आतंरिक मामलों से खुद को दूर रखकर सत्ता पर पकड़ बनायी थी , आज समय बदल चुका है , अब जाटलैंड के नाम से प्रसिद्द यह समाज भारतीय लोकतंत्र और हिंदुत्व को वास्तविक अर्थों में चुनौती दे रहा है | अपनी कुव्यवस्थाओं से पार पाकर जो धर्म खड़ा हो सके वही सच्चा हो सकता है | एक अनुमान के अनुसार हर रोज़ जाटलैंड की खाप पंचायतें अपने खूनी फरमानों से ३ - ४ जानें ले रही हैं | इस धरा पर होने वाले अमानवीय अत्याचारों की बानगी इसी से समझी जा सकती है कि यहाँ स्त्री अनुपात घटकर महज ७५० के आस - पास रह गया है | लेकिन इस सबसे परे समस्या का सबसे जो चिंतनीय पहलु है वो है इस पापी व्यवस्था को राज्य तंत्र का अपरोक्ष समर्थन मिलना | हाल ही में संपन्न हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय पार्टियों की भूमिका इस मुद्दे को लेकर अति निंदनीय रही | राष्ट्र की ठेकेदार रही कांग्रेस और खुद को हिंदुत्व की ठेकेदार कहती भाजपा के कर्णधारों ने इस असंवैधानिक खाप व्यवस्था की स्थानीय स्तर पर प्रशंसा करते हुए वोटों की सौदेबाजी के चक्कर में संविधान की तिलांजलि दे दी है |
हर छोटी सी छोटी बात पर भी टिपण्णी करने वाली हमारी न्यायपालिका भी इस पर अभी तक कोई कठोर आदेश दे पाने में अक्षम साबित हुई है | पिंक चड्डी वाले मामले को स्त्री स्वाभिमान की जीत बताने वाला मीडिया भी इस मामले में जनता को आंदोलित कर पाने में असफल सिद्ध हुआ है | लेकिन इस मामले से सबसे ज्यादा दोषी हैं हिंदुत्व का झंडा उठाये रहने वाले संगठन जो इस तरह की चुप्पी से अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं | ऐसे में जब दिनरात ये खाप पंचायतें न्यायतंत्र और धर्मसत्ता को चुनौती दे रही हैं जनमानस को आगे आकर इनकी ईंट से ईंट बजानी पड़ेगी |
स्वस्थ समाज की बुनियाद ही स्त्री - पुरुष के बीच का नैसर्गिक प्रेम है और यही धर्म का आधार भी है | ऐसे में हिंदुत्व को अपने ही घर में पनप चुके इन तालिबानीयों से निपटने के लिए प्रतीक्षा है फिर किसी दयानंद , राममोहन राय और विद्यासागर जैसे महापुरुष की |
|| " सत्यमेव जयते " ||