आजकल समाज के बुद्धिजीवी और वर्ग में गाँधी जी को नोबल पुरस्कार क्यों नहीं मिला इस बात पर बड़ी जोरदार चर्चाएँ हो रही हैं | सभी कथित बुद्धिजीवी इस मामले पर अपनी - अपनी टेर लगाये हुए हैं , अब चलिए आज हम भी इसी बात पर चर्चा कर लेते हैं शायद दिमाग के कुछ गड़बड़झाले ही सुलझ जाएँ |
" नोबल पुरस्कारों की स्थापना अल्फ्रेड नोबल ने की थी जो की डायनामाइट का भी अविष्कारक था , अल्फ्रेड नोबल ने डायनामाइट के अविष्कार के बाद पूरी दुनिया के युद्धरत देशों को इसे बेचकर बेपनाह दौलत अर्जित की | इसका प्रयोग बड़े पैमाने पर नरसंहार के लिए किया गया | जीवन के उत्तरार्ध में जब अल्फ्रेड नोबल बीमार रहने लगा , तभी एक दिन उनके भाई का इंतकाल हो गया | अगले दिन के अखबारों में गलती से भाई की जगह अल्फ्रेड नोबल के मरने की खबर छाप दी गयी |
सभी प्रमुख समाचार-पत्रों का शीर्षक निम्न था ....................
सभी प्रमुख समाचार-पत्रों का शीर्षक निम्न था ....................
" सदी का सबसे क्रूर हत्यारा मर गया , ईश्वर उसे नर्क में भी जगह न देगा "
इस शीर्षक को पढने के पश्चात् नोबल ने सोचा कि क्या दुनिया मुझे इसी तरह से याद रखेगी ?, फिर उसने नोबल फाउंडेशन की स्थापना की और ताज्जुब तो इस बात का है कि वो दुनिया में शांति का पुरस्कार बाँट रहे हैं : | ''
इस शीर्षक को पढने के पश्चात् नोबल ने सोचा कि क्या दुनिया मुझे इसी तरह से याद रखेगी ?, फिर उसने नोबल फाउंडेशन की स्थापना की और ताज्जुब तो इस बात का है कि वो दुनिया में शांति का पुरस्कार बाँट रहे हैं : | ''
कई लोग कहते हैं कि महात्मा गाँधी जी को नोबल पुरस्कार नहीं मिला !!
मेरा कहना है कि अहिंसा के उस परमदूत के सामने नोबल जैसों की औकात ही क्या है ?
संयुक्त राष्ट्र संघ ने शांतिदूत गाँधी जी के प्रयासों को सम्मानित करते हुए प्रतिवर्ष २ अक्टूबर गाँधी जयंती को विश्व अहिंसा दिवस ( International Non - Violence Day ) घोषित किया है | वह विश्व इतिहास के पूज्य महात्मा हैं। भारत को उन पर गर्व करना चाहिए।
मेरा कहना है कि अहिंसा के उस परमदूत के सामने नोबल जैसों की औकात ही क्या है ?
संयुक्त राष्ट्र संघ ने शांतिदूत गाँधी जी के प्रयासों को सम्मानित करते हुए प्रतिवर्ष २ अक्टूबर गाँधी जयंती को विश्व अहिंसा दिवस ( International Non - Violence Day ) घोषित किया है | वह विश्व इतिहास के पूज्य महात्मा हैं। भारत को उन पर गर्व करना चाहिए।
गाँधी जयंती के पावन अवसर पर बापू के आदर्शों को कोटि - कोटि नमन |
वर्तमान राजनीती में सबसे बड़ी कमी आदर्शवाद को व्यावहारिक पहलु में ना ढाल पाने की क्षमता का ना होना है , भारत के लाल ' शास्त्री जी ' राजनैतिक शुचिता और आदर्शवादी व्यवस्था की एक मिसाल कायम कर गए हैं |
शास्त्री जी का राजनैतिक जीवन आने वाले दिनों में हमारी राजनीती को प्रेरणा देने में सक्षम है | हम आशा कर सकते हैं कि भविष्य में यदि हमें भी राजनीती करनी है और कुछ सार्थक बदलाव लाना है तो शास्त्री जी के जीवन के पन्ने हमारी प्रेरणात्मक प्राथमिकताओं में अवश्य दर्ज होंगे |
भारत के लाल ' शास्त्री जी ' को जयंती के पावन अवसर पर कोटि - कोटि नमन |
|| " सत्यमेव जयते " ||
भारत के लाल ' शास्त्री जी ' को जयंती के पावन अवसर पर कोटि - कोटि नमन |