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तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों की पराजय के बाद एक बार फिर से भाजपा की हार को लेकर हिंदुत्ववादी हलकों में भारत की आम जनता को कोसने की कवायद शुरू हो गयी है | हिन्दू बहुल जनता को कोसने की यह प्रक्रिया हर चुनावी हार के बाद शुरू कर दी जाती है | प्रत्येक चुनावी हार के बाद हिंदूवादी राजनीति का दम भरने वाले जनता की आँखों पर पट्टी बंधे होने की दुहाई तो देते नज़र आते हैं , लेकिन

राष्ट्र संकट में घिरा है | धर्म खतरे में है लेकिन सत्ता के अधिनायक धर्मनिरपेक्षता के खतरे में होने का स्वांग रच रहे हैं | भारतीय धर्मनिरपेक्षता सम्पूर्ण विश्व में अद्वितीय है , यह   धर्म को ना सिर्फ सत्ता से बेदखल कर देती है बल्कि धर्म को राज्य प्रायोजित हथियार बनाकर लोकतंत्र का सौदा करने से भी बाज़ नहीं आती | संविधान के आदेशों और सुझावों को भी इसने पद-दलित करने

विभाजन के बाद से ही देश जिन समस्याओं से सर्वाधिक पीड़ित है , कश्मीर उनमें सर्वोपरि है | कश्मीर की समस्या का हल स्वतंत्रता के ६२ वर्षों के बाद भी ना होना हमारी रीढ़विहीन राजनीती को ही दर्शाता है | कश्मीर की समस्या पर राजनीती पिछले छः दशकों से चली आ रही है लेकिन वैश्विक आतंकवाद के इस नए दौर में इसके मायने बदल गए हैं |

हर रोज़ इस्लामी कुंठाओं की एक बानगी देखने को मिल जा रही है | इसी की अगली कड़ी में  इस्लामी देशों द्वारा कश्मीर मामलों के लिए विशेष दूत  की नियुक्ति का एक खटराग और भी जुड़ गया है | रह रहकर इस्लामवादी अपना रंग दिखला ही देते हैं आखिर जब तक पूरी दुनिया दार - उल - इस्लाम के झंडे के नीचे नहीं आ जाती तब तक ये इस्लामिक साम्राज्यवाद अपने षड्यंत्रों से चूकने वाला नहीं है

आजकल समाज के बुद्धिजीवी और वर्ग में गाँधी जी को नोबल पुरस्कार क्यों नहीं मिला इस बात पर बड़ी जोरदार चर्चाएँ हो रही हैं | सभी कथित बुद्धिजीवी इस मामले पर अपनी - अपनी टेर लगाये हुए हैं , अब चलिए आज हम भी इसी बात पर चर्चा कर लेते हैं शायद दिमाग के कुछ गड़बड़झाले ही सुलझ जाएँ | " नोबल पुरस्कारों की स्थापना अल्फ्रेड नोबल ने की थी जो की डायनामाइट का भी अविष्कारक था , अल्फ्रेड

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