26 / 11 की दुखद घटना को बीते हुए अभी एक वर्ष पूरा भी नहीं हुआ है लेकिन इसको लेकर इस्लामवादी षड़यंत्र प्रारंभ हो चुके हैं | इस बार इनकी तैयारी ना सिर्फ इस तरह की आतंकी कार्यवाहियों को जायज ठहराने की है बल्कि वैश्विक इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ भारत के पक्ष को मूल रूप से कमजोर करने के साथ - साथ आतंक से लड़ रहे पूरे तंत्र और शासकीय व्यवस्था को भी कटघरे में खड़े करने की साजिश है | इस नए प्रारूप में इन साजिशों को जिस प्रकार से अंजाम दिया जा रहा है उसे देखकर निकट भविष्य में आसन्न खतरे स्पष्ट दिखलाई पड़ते हैं | अभी तक भारत में इस्लामवादी साजिशों के तार केवल पाकिस्तान और बांग्लादेश से ही जोड़ कर देखे जा रहे थे लेकिन अब इसकी आहट निश्चित रूप से विश्व्यापी इस्लामी कट्टरपंथ को सींचते हुए धनी मुस्लिम देशों , खाड़ी देशों की मदद से फैलते कट्टरवाद को पोषित करते हुए क़दमों के रूप में सुनी जा सकती है |

वस्तुतः इस्लामवादियों के इन षड्यंत्रों को समझने के लिए हमें 26 / 11 के आतंकी हमले के बाद हुई घटनाओं को एक एक करके विश्लेषित करने और समझने की ज़रूरत है | हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एस . एम . मुश्रिफ ने एक 26 / 11  के हमले को खुला इस्लामवादी दृष्टिकोण देते हुए एक पुस्तक लिखी है  ' Who Killed Karkare ' | इस पुस्तक से कई चौकाने वाले तथ्य खुलकर सामने आते हैं | इस पुस्तक में ना सिर्फ भारतीय खुफिया एजेंसियों को कटघरे में खड़ा किया गया है बल्कि एक पूरी नई थ्योरी तैयार करने की कोशिश है जिसमें 26 / 11  के आतंकी हमले को 9 / 11 की तर्ज़ पर भारत सरकार द्वारा प्रायोजित  बताये जाने और इसी की तर्ज़ पर मुस्लिमों के साथ होने वाली कार्यवाहियों को हिन्दू सरकार का अन्याय भी साबित करने की कोशिश है |


अगर इस पुस्तक के मूल पर गौर करें तो इसमें ना सिर्फ करकरे की शहादत के लिए हिन्दू प्रतिक्रियावादियों को दोषी ठहराया गया है बल्कि कसाब और इस्माईल ( जिसे गोरेगांव चौपाटी पर स्व.  तुकाराम ओम्बले के नेतृत्त्व में मुंबई पुलिस ने मार गिराया था ) को भारतीय साजिश के तहत प्रताड़ित मुस्लिम युवकों के रूप में दिखलाया गया है | ठीक वैसे ही जैसे कि कश्मीर में मारे गए आतंकियों को पीड़ित पक्ष दिखाकर अफजल गुरु जैसे को हीरोइक छवि दी गयी है | जब सरकार इस का खंडन करती है तो इस्लामवादी सीधे - सीधे बटला हाऊस जैसी कार्यवाहियों का उदाहरण देकर सरकार को इस्लाम विरोधी सिद्ध करने से नहीं चूक रहे | वोटबैंक के लालच में सरकार ने भी अभी तक ऐसी किसी धारणा का पुरजोर खंडन करने में अपनी नाकामी दिखाकर कट्टरपंथियों को मुस्लिम युवा पीढी को बरगलाने और मुंबई हमले को  ' भारत प्रायोजित ' रूप में देखने की अपरोक्ष स्वीकृति भी दे ही दी है | इस पूरे मिशन को इस नजरिये से प्रारूपित किया गया है की भविष्य में मुस्लिम देश भारत पर मुस्लिम उत्पीडन के लिए आंतरिक हिन्दू आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला मुल्क घोषित कर सकें और अंततः मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए स्वायत्तता मांगी जाये जो की देश को विभाजन की राह पर ले जायेगी |

इस्लामवादियों का यह बौद्धिक मिशन बेहद खतरनाक है जिसमें सरकार की चुप्पी आग में घी डालने के बराबर है | इस पुस्तक बहुत सारे पहलू अभी बाकी हैं जिन पर चिंतन को अभी यहीं विराम दे रहा हूँ किन्तु आगे जारी रहेगा |

|| " सत्यमेव जयते " ||




  1. बड़े दुःख की बात है मित्र । और इनके बारे में कहा भी क्या जा सकता है, कुछ लोग है जो जिस थाली में खाते है उसी में छेद करने पर ऊतारु हैं।

    वन्दे मातरम

  2. कमी यहाँ भी हिन्दुओ की ही है !

    वन्दे मातरम !

  3. Unknown says:

    एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी का इस तरह की पुस्तक लिखना भी अपने-आप में एक देशद्रोही घटना है… भारत सरकार का रवैया वही है जो पिछले 60 साल से रहा है…। दिक्कत यह है कि कुछ बुद्धिजीवी अपने को श्रेष्ठ समझने और दिखाने के लिये इनके साथ जाने-अनजाने मिल गये हैं… जबकि सेकुलर तथा मानवाधिकारवादी "इंडस्ट्री" द्वारा दुष्प्रचार के लिये ऐसे "प्रोडक्ट" बहुत उपयोगी साबित होते हैं…

  4. जिस थाली में खाते है उसी में छेद करते हैं।


    || " सत्यमेव जयते " ||

  5. ऎसे मुसलमान ही अन्य शरीफ़ मुस्लिम लोगो का नाम बदनाम कर रहे है, जरा इस अधिकारी से पुछा जाये कि जिस मां की गोद मे खेल कुद कर बडा हुआ उसी पर पेशाब करते इसे शर्म नही आती, अगर इसे दिक्कत है तो दफ़ा होये जहां इसे इज्जत मिलती है, क्यो इस देश मै हम सब नागरिको का गुह खा रहा है

  6. वन्दे मातरम
    वन्दे मातरम
    वन्दे मातरम
    .
    .
    अंतुले की भाषा बोलने वालों की कमी नहीं है इस देश में. ऐसा करके भी इस देश में जिन्दा रह जाते हैं इसीलिए इनका दिमाग ख़राब हो गया है.

    जय हिंद

  7. इसस्वे ज़्यादा ख़तरनाक वह अभियान जो भारत की राजेनीतिक पार्टियां चला रही हैं. वोटों के लिए जिस तरह सच को झूठ और झूठ को सच सबित करने की कोशिश चल रही है, और इस क्रम में इस्लामी आतंकवादियों को बचाने की कोशिश की जा रही है, इसे आप क्या कहेंगे? आख़िर आज तक क्यों अफ़ज़ल को कांग्रेस ने दामाद बना कर बैठा रखा है?

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